भिनज्यू को बेटे में बदलने की साजिश

[हमारे साथ नये जुड़े श्री उमेश तिवारी ‘विश्वास की दाज्यू कथा का पहला भागदूसरा भाग आपने पढ़ा। उनकी एक और रचना भिंज्यू-कथा का पहला भाग भी आप पढ़ चुके हैं आज प्रस्तुत है उसी भिंज्यू कथा का दूसरा भाग – प्रबंधक ]

the_worlds_best_brother_in_law_tshirtऐसा नहीं है कि भिनज्यू की भूमिका हल्की-फुल्की ही हो, ससुराल के कई महत्वपूर्ण मसलों पर उनकी राय ली जाती है। कई बार ये मामले इतने गंभीर होते हैं कि उन्हें अपनी एफ.डी. तुड़ानी पड़ती है। घर-वर के चयन में निर्णायक स्वीकारोक्ति या ना-नकुर सम्प्रेषित करनी पड़ती है। ऐसे कई अवसरों पर भूमिका निर्वाह के बाद भिनज्यू तेज पत्ती की चाय या विल्स फिल्टर पीना पसन्द करते हैं। इस समय उनके श्रीमुख की आभा कम बोल्टेज पर जल रहे सौ वाट के बल्ब जैसी होती है। परोपकार की संतुष्टि नाक की टुक्की से टपकने की उद्यत देखी जा सकती है। उन्हें अन्दर से पता होता है कि उनकी भूमिका परम्परागत है किन्तु प्रकट में वह अपनी बुद्धिमत्ता अनुभव और चातुर्य को इसके नम्बर दे रहे होते हैं। फलॉं की मंगनी के वक्त तीन साल पहले उन्होंने साफ-साफ कह दिया था कि लड़के में अवश्य कोई खोट है, लड़का शराबी निकला। आटा चक्की लगाने के लिए उनके साढू ने उनसे परामर्श किया था, उन्होंने कहा, ‘लोहे का काम सबको नहीं फलता फिर भी आप देख लें’। आटा चक्की छः महीने में किराए पर उठानी पड़ी। यह दीगर बात है कि साढू का गल्ले का काम चमक गया। इस प्रकार की पेशेवर क्रियाओं में भिनज्यू को औरतों का दखल बिलकुल पसंद नहीं होता उनका मानना है कि स्त्रियां अपना व्यक्तिगत एंगिल घुसेड कर भॉंची सी मार देती हैं। उदाहरण के लिए एक साले का अच्छा रिश्ता बनते-बनते इसलिए रह गया कि उनकी पत्नी को उस परिवार से ओच्छयाट की बू आ गई। यह बू उनके गहनों से आ रही थी।

जिन घरों में भिनज्यूओं का समागम वर्ष में दो से अधिक बार होता है वहां एक तौलिया, ब्लेड का पैकेट, विल्स फिल्टर, बौनी स्काट, कुछ सूखे मेवे, एक जोड़ा हवाई चप्पल, मनोहर कहानियां का भूतिया विशेषांक, गरम पानी की थैली आदि हारमोनियम के बक्से में हमेशा रखी रहती हैं।

कार्य सम्पन्न होने के बाद भिनज्यू उदास होते हुए भी देखे गये हैं। इसको उदेखीना भी कहा जाता है। इस प्रकार की उदासी को साधु-संतों और गधों की उदासी के बीच रखा जा सकता है। क्योंकि जरा सा बैलेंस बिगड़ने पर वह इनमें से किसी एक की तरह व्यवहार करते भी पाये गये हैं। अधिकांश भिनज्यू दायित्व वहन के पश्चात थोडी देर आराम करते हैं, किन्तु बीच-बीच में पेशाब या पाखाने भी जा सकते हैं। ऐसी अवस्था में एक सदस्य को तौलिया लेकर खड़े रहने की आवश्यकता होती है। इससे पहले कि वह अपने हाथ अनुपलब्ध रूमाल को निकालने अपनी जेबों में डालें तौलिया पेश कर दिया जाय। जिन घरों में भिनज्यूओं का समागम वर्ष में दो से अधिक बार होता है वहां एक तौलिया, ब्लेड का पैकेट, विल्स फिल्टर, बौनी स्काट, कुछ सूखे मेवे, एक जोड़ा हवाई चप्पल, मनोहर कहानियां का भूतिया विशेषांक, गरम पानी की थैली आदि हारमोनियम के बक्से में हमेशा रखी रहती हैं।

भिनज्यू लोगों के लिए कुछ विशेषण आम तौर पर पहाड़ी परिवारों में प्रयोग किए जाते हैं जिनमें से कुछ अग्रलिखित हैं-गऊ जैसे सीधे, पानी से पतले द्याब्त (देवता), बकुवाभाड़ (मुंहफट), सुर्ते या मशिण (शू्रड), निगुर या पलीत (सफाई के मामले में) आदि। उक्त में से आवश्यकतानुसार पहले तीन का प्रयोग स्वच्छन्दता पूर्वक और बाद के तीन का प्रयोग दबे स्वर में घर के सदस्यों के बीच किया जाता है।

विदा होते समय भिनज्यू को पिठ्यां लगाया जाता है। कुछ वर्षों पहले तक उनके मस्तक पर लाल रोली का जो

शादी के बाद आपने सर्वदा उनका मान रखा है, जब बस की रोड बंद थी तब आप पैदल गये हैं, आपका पेट खराब था फिर भी आपने पूडियां खाई हैं, लेकिन नामकरण से लेकर शादी का कोई फंक्शन आपने नहीं छोड़ा। खाली हाथ कभी नहीं गये हैं। आपके लाए बर्फी के डिब्बों में आज भी आपकी सास ने सुई-धागा, बटन, नाड़े इत्यादि रखे है। रात-अधरात अपनी राय दी है। साल दर साल पिठ्यां लगाने को मना किया है पत्नी के एसटीडी के बिल चुकाए हैं और जेठू के लडके का फार्म अंग्रेजी में भरवाया है।

घस्सैका मारा जाता था उसको देखकर कोई भी अनुमान लगा सकता था कि वे भिनज्यू ही होंगे। इधर पता नहीं जेबकतरों की डर से या फैंशन की वजह से, अब एक लाल बुट्टा सा लगाया जा रहा है, पर मुठ्ठी से मुठ्ठी में स्थानान्तरित होने वाली भेंट में इजाफा हो रहा है। आज के भिनज्यू अपने पूर्ववर्तियों की तरह ना-ना कहते हुए भेंट स्वीकार करते हैं और राशि का अनुमान लगाते हुए ससुरालियों के प्रति अपने महत्वपूर्ण योगदान का आकलन करते हैं। कभी-कभी उनके मुख से निकलता है, ‘चलिए ठीक रहा फिर आपका…..’ वह मन में कह रहे होते हैं, ‘मैं अपने मां बाप का पाला-पोशा, पढ़ाया-लिखाया, आपके काम आया, हजारों के काम का तुमने सौ रूपल्ली पिठ्यां लगाया’। प्रकट में वह सास के शब्दों, ‘आपुण ध्यान धरिया’ के प्रत्युत्तर में ‘होई-होई’ कहते हैं। ट्रान्सपोर्ट के किराए का हिसाब लगाते हुए, साले की चुंगी राशि निर्धारित कर रहे होते है। फिर अपनी पत्नी द्वारा दिए गये ऐपणों को फांदकर निकल जाते हैं।

बदलते समय की बलिहारी भिनज्यू अब ब्रदर इन लॉ, बेटा आदि संबोधनों से नवाजे जा रहे हैं। इसके पीछे सालों की बरसों से दबी भावनाएं और ससुरों का अपनी लड़कियों को कान्वेंट शिक्षा दिलवाकर की गई शादी का दर्प छुपा हुआ है। वह भिनज्यू की पुरातन छवि से घबराए हुए हैं ठीक वैसे ही जैसे कभी राष्ट्रीय दल उत्तराखण्ड नाम से घबराये हुए थे। वह समझते हैं कि अंग्रेजी नाम देकर यह रिश्ता थोडा आधुनिक रूप धारण कर लेगा जिसके फलस्वरूप जवांई अपने को बेटा समझ कर कुछ मुरव्वत का भाव दिखाएंगा, वैसे आजकल बेटे कहां बाप पैदा हो रहे हैं।

मैं अपने इस लेख द्वारा सारे भिनज्यूओं को आगाह करना चाहता हूं कि आपके खिलाफ साजिश चल रही है, जिसमें विदेशी शब्दों का सहारा लिया जा रहा है। पर आप याद करें आप में अडियल बने रहने की जन्मजात योग्यता है। आप हरगिज इस फंदे में न आएं। यहां कहना तो नहीं चाहिए पर आपको कसम है अपने पहले प्यार की, (हॉं वहीं मकर son-in-lawराशि वाली) अपने को भिनज्यू और जवांई ज्यू ही संबोधित करवाएं। आप कैसे भूल सकते हैं कि उनके घर की लडकी आपके घर में है। आपने ऐसे समय में ल्याख लगाया है जब स्कूटर के बिना शादी नहीं होती थी। हालांकि आपको स्कूटर क्या साइकिल चलाना भी नहीं आता था पर स्कूटर मिलता तो सीख जाते। यहां आपको एक अन्दर की बात भी बता दूं खुद उनके घरों में एक बट्टा चार सदस्य भिनज्यू शब्द से और उस असली छवि से कोई परहेज नहीं करते, क्योंकि वह भी आपकी ही नाव में सवार हैं। अगर आपने स्टैण्ड ले लिया तो वह दिल पक्का कर लेंगे बहकने से बच जाएंगे और जब तक संभव हो भिनज्यू बने रहेंगे। दूसरी बात शादी के बाद आपने सर्वदा उनका मान रखा है, जब बस की रोड बंद थी तब आप पैदल गये हैं, आपका पेट खराब था फिर भी आपने पूडियां खाई हैं, लेकिन नामकरण से लेकर शादी का कोई फंक्शन आपने नहीं छोड़ा। खाली हाथ कभी नहीं गये हैं। आपके लाए बर्फी के डिब्बों में आज भी आपकी सास ने सुई-धागा, बटन, नाड़े इत्यादि रखे है। रात-अधरात अपनी राय दी है। साल दर साल पिठ्यां लगाने को मना किया है पत्नी के एसटीडी के बिल चुकाए हैं और जेठू के लडके का फार्म अंग्रेजी में भरवाया है। यहॉ यह भी कह दूं कि मुझे बहुत सी बातें पता नही होंगी लेकिन इतना निश्चित तौर पर जानता हूं कि वो आपके अहसानों के बोझ से दबे हुए हैं। पूरी तरह नहीं तो एक बट्टा तीन अवश्य ही, और इतना कम नहीं होता। दूसरी ओर आप मांग क्या रहे हैं ? आपने कभी कुछ मांगा जो आज मांगेंगे ? आप केवल एक संबोधन को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं एक ऐसा संबोधन जिससे हमारी संस्कृति की जड़े जुड़ी हुई हैं।

कल्पना करें, जब विजन 2020 के अनुरूप तरक्की करता भारत होगा परन्तु भिनज्यू नहीं होंगे, ब्रदर-इन-लॉ होंगे, बेटे होंगे! तब बेचारे भिनज्यू को कैसा लगेगा।

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7 Thoughts to “भिनज्यू को बेटे में बदलने की साजिश”

  1. क्या बात कह दी दाज्यू, भिनज्यू को हम-आप मिलकर हमेशा जिन्दा रखेंगे हो। ब्रदर इन ला-शा वाले तो दो-तीन दिन के ही ठैरे।

  2. बहुत-बहुत सुक्रिया इस रोचक जानकारी के लिए. लेखक, संगीतकार, गायक कभी मरता नही यह भी किसी समझदार ब्यक्ति ने ही कहा है.

    आप उमेश जी युही लिखते रहिए और कभी न मिटने वाली लेख लिखते रहिए भिनज्यू जी को भी पढा़इये।

  3. khima Nand Joshi

    Wah Wah!!! aapne to kamal kamal kamal kr diya……………. Mja aa gya………husi ruk nahi rhi ….100% Scchi bat….wah wah……

  4. BHINJU ko BHINJU hi rahne de. esi me prem ki abhivyakti hai . wah umesh ji lekh padker mazzzzzzzzzzzzzzzzza aa gaya . ese aage our badaye.

  5. harish

    Bahut achha likha hai sir ji thanks

  6. JITENDRA RANA

    waah bhai ji kya baat maja a gaya…aap yu hi likhte rahe…

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